Wednesday, August 21, 2019

अनुच्छेद 370: कश्मीर पर मेडिकल जर्नल 'द लैन्सट' के संपादकीय से आईएमए नाराज़

प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल 'द लैन्सट' के कश्मीर को लेकर लिखे गए सम्पादकीय
2015 में 'डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर' नाम के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने एक निजी सर्वेक्षण के नतीजे जारी किए थे. इसमें कहा गया था कि कश्मीर में रहने वाली लगभग 45 प्रतिशत आबादी मानसिक तनाव से जूझ रही है.
ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाली 187 साल पुरानी विश्व प्रसिद्ध 'द लैन्सट' पत्रिका पहले भी अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया में हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा चुकी है. पत्रिका के अनुसार उसका उद्देश्य दुनिया में हिंसा की वजह से हो रही मानवीय हानि के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भी है.
इधर, कश्मीर में जारी स्वास्थ्य संकट पर बात करते हुए डॉक्टर शांतनु कहते हैं कि आईएमए की जम्मू-कश्मीर यूनिट पूरी तरह से वहां मरीज़ों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए प्रयासरत है.
वह कहते हैं, "हम अपनी तरफ़ से स्थिति को संभालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है सरकारी सुधारों को लागू करने के दौरान आम लोगों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई बाधा न आए."
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पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आपत्ति जताई है.
इस संपादकीय के ख़िलाफ़ जवाबी पत्र लिखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने कहा कि स्वास्थ्य की आड़ में राजनीतिक टिप्पणी करके जर्नल ने एक चिकित्सकीय प्रकाशन होने के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है.
'द लैन्सट' ने अपने हालिया अंक के सम्पादकीय में भारत सरकार द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की कड़ी आलोचना करते हुए वहां हो रहे मानव अधिकारों के कथि
बीबीसी से बातचीत में आईएमए के अध्यक्ष डॉक्टर शांतनु सेन कहते हैं, "चार लाख से भी अधिक सदस्य डॉक्टरों के साथ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन दुनिया का सबसे बड़ा चिकित्सकीय संगठन है. हमारा विश्वास है कि चिकित्सकीय संगठनों और पत्रिकाओं को स्वास्थ्य से सम्बंधित मुद्दों पर ही लिखना चाहिए."
अपने सम्पादकीय में द लैन्सट ने लिखा था, "कश्मीर में टेलिफ़ोन लाइनों, मोबाइल और इंटरनेट पर लगी पाबंदियों के साथ-साथ वहां लगातार जारी कर्फ़्यू स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य, उनकी सुरक्षा और उनकी नागरिक स्वतंत्रता को लेकर कई चिंताजनक सवाल खड़े करता है."
इसके आगे लिखा गया है, "भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि कश्मीर की स्वायत्तता वापस लेने का निर्णय वहां समृद्धि लेकर आएगा. लेकिन इससे पहले कश्मीर के लोगों को वहां दशकों से जारी हिंसा से मिले ज़ख़्मों से निजात चाहिए, न कि हिंसा और अलगाववाद का एक नया दौर."
इस संपादकीय को लेकर आईएमए के अध्यक्ष शांतनु सेन ने कहा, "अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे पर बहस हो सकती है. यहां जो हो रहा है, आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं. लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं की यह भारत का निजी मामला है. विदेश में प्रकाशित हो रही 'द लैन्सट' पत्रिका भारत के निजी कूटनीतिक मामलों पर कोई टीका-टिप्पणी करे, यह हम बर्दाश्त नहीं करेंगे."
त हनन पर सवाल उठाए हैं.