Wednesday, April 10, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

विनय कटियार, कल्याण सिंह, उमा भारती, कलराज मिश्र, रामविलास वेदांती, स्वामी चिन्मयानंद जैसे बीजेपी के तमाम नेता राम मंदिर आंदोलन का भी जाना-पहचाना चेहरा हुआ करते थे. अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो चुका है, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्र को उम्रदराज़ होने के चलते टिकट नहीं दिया, उमा भारती ने चुनाव लड़ने से ख़ुद ही मना कर दिया जबकि कुछ लोग टिकट की आस लगाए होने के बावजूद टिकट पा नहीं सके.
राम विलास वेदांती तो पिछले हफ़्ते सरकार और बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व पर ख़ासे नाराज़ हुए और उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगा दिया कि बीजेपी कभी राम मंदिर बनवाना चाहती ही नहीं थी.
उन्होंने कहा, "विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस के लोगों के बलिदान के चलते बीजेपी सत्ता में आई. लेकिन बीजेपी ने रामजन्मभूमि को स्वीकार नहीं किया, यह आश्चर्य की बात है. पांच साल हो गए, माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी अयोध्या नहीं आए. मुझे आश्चर्य है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी भगवान राम और अयोध्या में राम मंदिर को कैसे भूल गई है."
हालांकि बीजेपी के नेता राम मंदिर के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में होने की बात कहकर टाल देते हैं लेकिन मंदिर आंदोलन से जुड़े नेताओं के राजनीतिक वनवास पर जवाब देने में उन्हें भी दिक़्क़त होती है.
बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "टिकट किसे देना है, किसे नहीं देना है ये चुनाव समिति तय करती है. इस बारे में कोई एक व्यक्ति तो फ़ैसला करता नहीं है. पार्टी जिसे अधिकृत करती है, वही लोग कमेटी में होते हैं और उन्हीं की स्वीकृति से टिकट मिलता है."
बीजेपी प्रवक्ता कुछ भी कहें लेकिन बीजेपी से सांसद रहे राम विलास वेदांती की इस बात में दम है कि बीजेपी अयोध्या और राम मंदिर के कारण ही सत्ता में आई.
1984 में सिर्फ़ 2 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी मंदिर मुद्दे के ज़रिए 1989 के लोकसभा चुनाव में पांच साल के भीतर सीधे 85 सीटों पर पहुंच गई.
बाद में बीजेपी ने न सिर्फ़ यूपी में सरकार बनाई, केंद्र में भी गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया और साल 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत भी ले आई.
विनय कटियार फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) से ही तीन बार लोकसभा में पहुंचे और उन्हें उम्मीद थी कि 2018 में राज्य सभा का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद पार्टी दोबारा भेज देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हालांकि विनय कटियार बीजेपी सरकार और उसके मौजूदा नेतृत्व पर उतने हमलावर नहीं हैं जितने कि राम विलास वेदांती. उन्हें अब भी भरोसा है कि बीजेपी 2019 में सरकार बनाएगी और राम मंदिर का मुद्दा हल करेगी लेकिन इसके लिए वो एक और बड़ा आंदोलन खड़ा करने की भी बात कर रहे हैं.
विनय कटियार को क़रीब से जानने वाले बीजेपी के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें भी जमकर उपेक्षित किया लेकिन शायद वो अभी भी उम्मीद पाले हैं कि सरकार बनने पर पार्टी उन्हें किसी संवैधानिक पद पर बैठा सकती है. यही वजह है कि वो खुलकर मोदी सरकार और बीजेपी नेतृत्व का विरोध नहीं कर रहे हैं."
जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी में पुरानी पीढ़ी के नेताओं की राजनीतिक निष्क्रियता या उनकी कथित उपेक्षा के अलावा आश्चर्यजनक बात ये है कि पार्टी में दूसरे दलों से आए नेता ख़ासी तवज्जो पा रहे हैं.
इससे भी ज़्यादा दिलचस्प बात ये है कि कई नेता तो न सिर्फ़ मंदिर आंदोलन के विरोधी रहे बल्कि हिन्दू देवी-देवताओं का उपहास तक उड़ाते थे.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता बीएसपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं का उदाहरण भी देते हैं, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर.
हालांकि ख़ुद विनय कटियार इस मुद्दे पर बहुत ज़्यादा बातचीत नहीं करते हैं, ख़ासकर मंदिर मुद्दे पर बीजेपी की कथित बेरुख़ी और उससे जुड़े नेताओं की राजनीतिक निष्क्रियता पर.
वहीं मंदिर आंदोलन से जुड़े एक अन्य संत स्वामी चिन्मयानंद देश के गृह राज्य मंत्री भी रह चुके हैं.
साल 2014 में भी टिकट चाहते थे और इस बार भी, लेकिन टिकट पाने में नाकाम रहे.
विनय कटियार की तरह बीजेपी के ख़िलाफ़ मुखर होकर कुछ कहने से परहेज़ करते हैं.