Wednesday, July 25, 2018

नज़रियाः भारत की परेशानी बढ़ी, चीन के साथ नजदीकी बढ़ा रहा है भूटान

22-24 जुलाई के बीच चीन के उपविदेश मंत्री कौंग शुआनयू ने भूटान का तीन दिवसीय दौरा किया. डोकलाम में पिछले साल अगस्त में भारत और चीन की सेना के 73 दिनों तक चले विवाद के खत्म होने के बाद यह पहली बार है जब चीन और भूटान ने सीधा संपर्क किया है.

चीन और भूटान के बीच कोई औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं है, यही कारण है कि चीन के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर बताए गए एशियाई देशों में उसका नाम नहीं है, लेकिन समय-समय पर यहां के अधिकारी एक दूसरे देश का दौरा करते रहते हैं, और चीन के नई दिल्ली स्थित राजदूत भूटानी राजदूत के साथ नियमित आधिकारिक बातचीत भी करते रहते हैं.

इस दौरे पर अधिकांश रिपोर्ट्स में यह ज़रूरी तथ्य मौजूद है कि कूटनीति में रैंक को लेकर प्रोटोकॉल को थोड़ा बदला गया और कौंग की औपचारिक बैठक को सर्वोच्च सम्मान दिया गया. चीन के उपविदेश मंत्री ने भूटान नरेश और पूर्व नरेश के साथ बैठकें कीं और प्रधानमंत्री सेरिंग तोबगे के साथ ही विदेश मंत्री दामचो दोरजी से भी मिले.

आधिकारिक बयान में कहा गया कि दोनों देशों ने सीमाई विवाद सुलझाने के लिए आपसी बातचीत पर सहमति जताई. सीमा को लेकर देशों के बीच एक आम राय बनी. हालांकि बयान में आम राय के स्वरूप के विषय में नहीं बताया गया.

चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि "दोनों देशों को सीमाई इलाकों में शांति बनाए रखने और सीमाई मुद्दे के अंतिम निपटान के लिए सकारात्मक स्थितियां पैदा करने के लिए, दोनों पक्षों को आगे भी सर्वसम्मति से सीमा पर बातचीत करते रहना चाहिए."

ऐतिहासिक रूप से, भूटान और तिब्बत के बीच मजबूत सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं लेकिन ब्रिटिशों के समय से ही भूटानियों को उनके विदेशी संबंध को लेकर हमेशा भारत गाइड करता रहा है. वास्तव में भूटान अभी भारत पर पूरी तरह से निर्भर है. हालांकि डोकलाम की घटना नींद से जगाने का संकेत है.

भूटान इन दो ताकतवर देशों के बीच गोलीबारी के बीच में अपने यहां खून बहते नहीं देखना चाहता. सवाल यह है कि चीन के साथ अपनी सीमाओं को लेकर भूटान कब तक नियंत्रित होता रहेगा और भारत की सामरिक आवश्यकताओं को चुपचाप स्वीकार करता रहेगा.

डोकलाम चीन के लिए ज़रूरी है क्योंकि यह चुंबी घाटी की बनाई सामरिक कमज़ोरी से तीन ओर से घिरा है, उधर भारत के लिए यही स्थिति सिलीगुड़ी कॉरिडोर में स्थित चिकन नेक पर है जहां चीन अस्वीकार्य लाभ की स्थिति में है, यह भारत को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ने वाला भूभाग है.

यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान भूटान से भी कई ऐसी आवाज़ें उठीं थी जिसमें डोकलाम को लेकर भारत की सामरिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने पर सवाल उठाया गया था.
इसके बाद चीन ने जब भूटान के साथ अपनी वार्षिक बातचीत को रद्द कर दिया तो भी कई नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आई थीं. अब यह किसी से छुपा नहीं है कि डोकलाम के महत्व को लेकर भारत और भूटान के बीच स्पष्ट असहमति है.

ख़ास कर चीन के साथ सीमाई मुद्दों को हल करने के लिए भूटान पर घरेलू दबाव बढ़ता ही जा रहा है. युवा पीढ़ी के नज़रिये को बखूबी दर्शाते सोशल मीडिया पर उस रणनीति की समझदारी को लेकर बहुत से सवाल पूछे जा रहे थे जिसकी वजह से वहां के लोग भारत और चीन के बीच गोलीबारी का शिकार हो सकते थे.

भूटान के चरवाहे सीमाओं पर चीनी अतिक्रमण और लगातार हो रहे बुनियादी ढांचे के निर्माण के बारे में शिकायत कर रहे हैं, इसकी वजह से उनकी खुली आवाजाही में खलल पैदा हो रही है और यह चीन के साथ इस मामले को सुलझाने की तात्कालिकता पर जोर डालता है.अब भूटान चुनाव की ओर बढ़ रहा है, तो वहां की घरेलू राजनीति में इस मामले के एक मुद्दा बनने की संभावना है.

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